रेन विद कुल्हड़
कल मैं बारिश में भीग गया था| सोचा क्यों ना गरमागरम इलायची वाली चाय पी जाये, मज़ा आएगा|
एक चाय की गुमटी पर गया और चाय वाले से कहा " भैया एक बढ़िया सी अदरक और इलायची वाली चाय बना दो.
हलकी हलकी बारिश हो रही थी, मै बारिश में भीग कर उसका मज़ा उठा रहा था|
" ये लीजिये, गरमा गरम चाय " चाय वाले भाई ने गुमटी में बैठे हुए कहा|
चाय वाले भाई की तरफ देखा तो वो कुल्हड़ में चाय दे रहे थे|
ना जाने कितने सालो बाद कुल्हड़ के दर्शन हुए थे| कुल्हड़ में से उठता हुआ धुआ लगता है बारिश के साथ खेल रहा हो|
चाय की पहली चुस्की : अरे वाह ! Great Combination
कुल्हड़ में से मिट्टी दी सोंधी -२ खुशबू और चाय में से इलायची दी खुशबू, और वो भी बारिश के मौसम में, मज़ा आ गया|
चाय ने दिलोदिमाग को ताज़ा कर दिया था|
अब क्या करे यारो, कुल्हड़ चीज़ ही ऐसी है,
इसमें पानी किसी अमृत से कम नहीं लगता| और चाय जन्नत से कम नहीं लगती |
मगर अफ़सोस, ग्रामीण भारत का कुल्हड़ India के प्लास्टिक disposable कप के सामने दम तोड़ रहा है,
प्लास्टिक कप में चाय पीने का तो मन भी नहीं करता, प्लास्टिक कप से चाय पी लेते है मगर संतुष्टि बिलकुल भी नहीं मिलती| लगता है जैसे किसी ने डांट लगा के पिलाई हो |
इसके बाद भी प्लास्टिक कप का इस्तेमाल करते है | न जाने कितने लोग प्लास्टिक कप को इधर उधर फ़ेक देते है | उसका नतीजा होता है बरसात के मौसम में नाली जाम |
कुल्हड़ तो प्रकृति से बना है और प्रकृति में ही मिल जाता है , मग़र प्लास्टिक कप तो अप्राकृतिक तरीके से बना है तो उसके प्रकृति में मिलने का सवाल ही नहीं पैदा होता|
कुल्हड़ से लाखो लोगो को रोजगार मिलता है| ना जाने कितने कुम्हारों के परिवार इस उद्योग के बंद होने से बर्बाद हो रहे है |
कुल्हड़ का इस्तेमाल करके हम अपने देश का प्राकृतिक एवं सामाजिक तौर पर भला कर सकते है |
हम भारतीय हैं ही ऐसे अपनी ही विरासत को महत्व नहीं देते हैं |
अरे यारो एक रुपया जायदा खर्च करो मज़ा भी लो और देश का भला भी करो |
अमेरिका या किसी पश्चिम देश ने कल कुल्हड़ को पेटेंट करवा लिया तब शायद हमारी नींद खुलेगी |
जागो ग्राहक (भारतीय ग्राहक ) जागो |
Yes...kullad jindabaad ...aur pattal bhi ..khane pine ka maja doguna ho jata hai.
ReplyDeleteबहुत दिलचस्प तरीके से पर्यावरण संदेश दे डाला, आपकी चिंता वाजिब है पर इस आर्थिक युग में इन पर ध्यान देने का समय ना सरकार के पास है और नाही जनता के पास. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteअब क्या करे यारो, कुल्हड़ चीज़ ही ऐसी है,
ReplyDeleteइसमें पानी किसी अमृत से कम नहीं लगता| और चाय जन्नत से कम नहीं लगती |
स्वाद आ गया!
ReplyDeleteसौ फीसदी सहमत!
पर्यावरण के संरक्षण का चुस्की भरा तरीका!
आशीष
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बैचलर पोहा!!!
बारिश और उसमे कुल्हड़ में चाय...एकदम स्वर्गिक आनंद...
ReplyDeleteअगर कुल्हड़ अवेलेबल हो तो मैं भी प्लास्टिक के कप को तवज्जो नहीं देती...
सार्थक पोस्ट